इतिहास

मोहना गाँव का इतिहास बहुत पुराना  माना जाता है , इसकी चर्चा पांडवों के अज्ञातवास के समय से की जाती है । 
कहा जाता है की माँ कालका मोहना मंदिर का निर्माण पांडवों ने आज्ञात वास के दौरान किया था ।
मंदिर के आस - पास विशाल आकार पत्थरों  द्वारा मंदिर की नींव रखी गई थी |
 पत्थर  पांडवों के मजले भाई भीम के द्वारा लाये गए थे ।  
यहाँ पर पांडवों ने माँ कालका जी की पूजा की थी ।


मोहना का पांडवकालीन दुर्गा मंदिर


मंदिर की विशेषता
अज्ञातवास के दौरान मोहना गांव में पांडवों ने मां दुर्गा की पूजा की थी। इस ऐतिहासिक मंदिर को मुगलों ने पूरी तरह से खत्म करने का प्रयास किया, लेकिन अंग्रेजों के शासन में इसे दोबारा से सजाया-संवारा गया। मंदिर पर नवरात्रों में दुर्गाष्टमी को विशेष मेला लगता है और दंगल का आयोजन किया जाता है। आयोजनों में भारी संख्या में लोगों की भीड़ जुटती है।
कुएं से निकली थी मां की मूर्ति
मोहना गांव के जंगल में बने दुर्गा मां के मंदिर की पौराणिक गाथा में बताते हैं कि मां की मूर्ति कुएं से निकली थी। मंदिर में जब धर्मराज युधिष्ठिर ने पूजा की थी तो उनके चारों भाइयों ने मंदिर का पहरा दिया था। चारों भाइयों के नाम से मंदिर के चारों दिशाओं में मूढा जैसे खंभ बनाए गए हैं। श्रद्धालु इनकी भी पूजा करते हैं। मंदिर की मूर्ति पर पांडव शासन काल की लिखाई भी है।
पांच ब्राह्मण करते हैं मंदिर की देखरेख
ऐतिहासिक मां दुर्गा मंदिर की मोहना गांव के ही निवासी पांच ब्राह्मण देख-रेख करते हैं। मंदिर के पुजारी दीपचंद, साधू, खेमा, जवाहर, मेघराज का कहना है कि मंदिर को मुगलों के शासन काल में काफी नुकसान पहुंचाया गया, लेकिन उनके पूर्वज फिर भी पूजा करते रहे। उसके बाद से मंदिर में बदस्तूर पूजा-पाठ जारी है, यहां नवरात्र में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ जुटती है। मंदिर का बाद में काफी सजाया संवारा गया।
अष्टमी पर लगता है बड़ा मेला व दंगल 
यहां प्रति वर्ष दोनों नवरात्र में दुर्गाष्टमी के मेले में आसपास के गांवों के हजारों श्रद्धालु पूजा-अर्चना के लिए आते हैं। यहां ज्यादातर लोग कोई न कोई मनौती की कामना लेकर आते हैं। मनोकामना पूरी होने पर देवी पर छत्र चढ़ाने की श्रद्धा मानी जाती है, जिसे लोग श्रद्धापूर्वक निभाते हैं।

मंदिर तक कैसे पहुंचे
फरीदाबाद से आठ किलोमीटर दूर बल्लभगढ़ शहर पहुंचकर वहां से 17 किलोमीटर दूरी मोहना गांव के लिए बसें जाती हैं। बस के अलावा गांव मोहना तक तिपहिया भी चलते हैं। दोनों प्रकार के साधनों से मंदिर तक आसानी से पहुंचा जा सकता है।




मोहिया पुर का नाम मोहना कैसे  पड़ा :-

लोगों  द्वारा कही सुनी  :-

बहुत पुरानी बात है !!!! कहा जाता है की मोहना गाव पहले वर्तमान यमुना नदी के उस पार बस्ता था ! तब गावं का नाम मोहिया पुर था जो अब बिगड़ कर मोहना हो गया है ।
मोहिया पुर बहुत ही समृद्ध गावं था सभी लोग हंसी खुसी मिल -जुल कर अपना जीवन व्यतीत कर रहे  थे ।

ज्यादा तर लोगों का व्यवसाय खेती बाड़ी था और वो खेती   के काम में ही व्यस्त रहते थे । कुछ खली समय मिलता तो लोग चौपालों पे अपने दुख सुख की बातें करते ।

गावं की ओरतें भी काँधे से कंधा मिला कर खेतों में मर्दों का हाथ बटाया करती थी।
किसी भी प्रकार का किसी को कोई कष्ट नहीं था ।

एक बार एक किसान परेशां सर पे हाथ रखके बैठा हुआ था । देखने से ही पता चल रहा था की बेचारा बहुत परेशां है सायद किसी की चिंता है उसको ।

तभी किसी ने उसके काँधे पे हाथ रखा उस व्यक्ति ने ऊपर की तरफ मुह उठाया तो उसने देखा की उसके सामने एक हट्टा - खट्टा एक नोजवान खड़ा है । उसने पूछा भाई परेशां से लग रहे हो क्या बात है ।
उस व्यक्ति ने कहा क्या बताऊँ भाई खेत में फसल खड़ी है , ऊपर से बारिस आने वाली है । लेकिन उसे काटने के लिए मजदुर नहीं मिल रहे है ।
नोजवान ने कहा की भाई परेसान मत हो सब ठीक हो जायेगा ।

फिर क्या हुआ देखते ही देखते सारी फसल कट गई और गड़ा भी लग गया । किसान यह देख कर हैरान रह गया ।

और दोनों की दोस्ती हो गई ।।। दोनों की मित्रता गहरी हो गई ।।।  कई दिन बीत गए ......।।।

वो किसान एक दिन गावं के और लोगों से साथ बैठा बात कर रहा था तो उसने अपनी फसल काटने वाली बात लोगों को बताई । लोग डर गए !!!!

लोगों ने उसको बताया की भाई उससे दोस्ती अच्छी नहीं वो तो कोई "जिन्न " (भूत ) है ।

वो किसान भी डर गया उसने उससे छुटकारा पाने का उपाय पूछा । लोगों से उसे बताया की अब जब वो आये तो उसे बैठने के लिए गर्म ईंट दे देना ।

किसान ने ऐसा ही किया जब वो जिन्न उससे मिलने उसके पास आया तो उसने आलव से निकल कर उसे गर्म ईंट बैठने को दी वो जल गया तो उस जिन्न को बहुत गुस्सा आया और उने मोहिया पुर गावं को तहस - नहस कर दिया । और एक सुन्दर सा मोहिया पुर गावं बर्बाद हो गया । सब लोग डर  के मारे वहां से भाग कर यमुना नदी के इस पार आ गए  और यहीं बस गए ।

 इस पार आने के बाद मोहिया पुर का नाम मोहना पड़ा ।।।।।






मोहना गाँव को मुगलों के समय की राजधानी माना जाता है |

यहाँ पर मुग़ल काल के पुराने खँडहर देखने को मिलते हैं |

खंडहरों को देख कर यहाँ की मुग़ल सभ्यता का बोध होता है |

यहाँ बहुत से महल जो की खँडहर हो चुके हैं और सुरंगे भी है |








शिद्ध बाबा का बदलता स्वरूप !!!!! 

शिद्ध बाबा का वर्तमान मंदिर ।।।
शिद्ध बाबा के वर्तमान पद चिन्ह ।

शिद्ध बाबा का बदलता स्वरूप !!!!!

लोगों ने शिद्ध बाबा का रूप ही बदल दिया । सायद लोगों को शिद्ध बाबा की भक्ति किसी और रूप में करनी थी ।
लोगों ने बाबा का मंदिर तो बदला ही बदला बाबा की पद चिन्ह ही बदल दिए ।।

शिद्ध बाबा का प्राचीन मंदिर  बहुत ही छोटा था जिसमे लोग झुककर बाबा के दर्शन करते थे । जिसका मतलब था की हमें हमेसा बड़ों के सामने नतमस्तक रहना चाहिए ।
शिद्ध बाबा के प्राचीन पद चिन्ह जो अब मंदिर से बहार निकाल कर पीपल के पेड़ के नीचे रह दिए हैं ।

प्राचीन शिद्ध के पद चिन्हों के बाद बाबा की  ये मूर्ति मंदिर में स्थापित की  गई  । बाद में किसी ने इस  बाबा की मूर्ति को  किसी नालायक तत्वों ने उठाकर यमुना में फैक दिया । अब ये मूर्ति वर्तमान मंदिर के बाजु वाले मंदिर में राखी हुई है ।





03-09-2012 (mohna uptahsil)

मोहना उपतहसील का सोमवार 03-09-2012 को पृथला के विधायक रघुबीर सिंह तेवतिया तथा उपायुक्त बलराज सिंह ने नायब तहसीलदार राजसिंह को अनाज मंडी स्थित मार्केट कमेटी के कार्यालय में विधिवत रूप से सीट पर बैठा कर उद्घाटन कर दिया। इससे पहले यहां पर हवन किया गया, जिसमें विधायक व उपायुक्त ने आहुति डाली। राज सिंह बल्लभगढ़ तहसील के नायब तहसीलदार हैं और उन्हें मोहना उपतहसील का अतिरिक्त पदभार सौंपा गया है। वे नवनिर्मित उपतहसील के पहले नायब तहसीलदार हुए हैं। इस मौके पर ग्रामीणों ने विधायक तेवतिया व उपायुक्त बलराज सिंह का ढोल-नगाड़ों से स्वागत किया। ग्रामीणों ने उपायुक्त व विधायक को पगड़ी बांधकर सम्मानित किया तथा फूल-माला पहनाकर स्वागत किया। उन्होंने उपतहसील कार्यालय का रिबन काटा। मोहना से बल्लभगढ़ रोड को 17 करोड़ रुपये की लागत से बनाया जा रहा है। यह प्रदेश की छह बड़ी सड़कों में से एक है। उपायुक्त बलराज सिंह ने कहा कि नायब तहसीलदार पूरे सात दिन यहां पर बैठेंगे। वे मंगलवार और शुक्रवार को रजिस्ट्रेशन का काम करेंगे और अन्य दिन फील्ड का काम करेंगे। उन्होंने नायब तहसीलदार राज सिंह से कहा कि वे उपतहसील के रोल मॉडल हैं। सबसे पहले यहां पर बैठे हैं, जो तरीका वे अपनाएंगे, उनको बाद में आने वाले नायब तहसीलदार अपनाएंगे। इसलिए वे अपने दामन को साफ रखें। इस मौके पर जिला पंचायत एवं विकास अधिकारी नरेश कुमार पंकज, जिला राजस्व अधिकारी पी.डी. शर्मा, बल्लभगढ़ के तहसीलदार डा. नरेश कुमार, मार्केट कमेटी के सचिव लेखचंद, गांव की महिला सरपंच के पति दानी व अन्य पंच मौजूद थे।

एक सपूत की कारगिल युद्ध में शहादत :


शहीद विरेंद्र कुमार चार जाट रेजिमेंट में सिपाही था। वह कारगिल युद्ध के दौरान मश्कोह घाटी में तैनात था। चार जुलाई 1999 को उसने पाक सैनिकों से लड़ते हुए अपने प्राणों की आहूति दे दी थी। उसकी स्मृति में राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में शहीद स्मारक बनाया गया है। उसकी जयंती पर हर वर्ष पहली जनवरी को खेलकूद प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है।



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