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याद है मुझे ( स्मिर्ति )
याद है मुझे ........
वो तितलियों के पीछे भागना ,
और झुंडों में उलझ कर गिर जाना ||
याद है मुझे ........
वो बादलों की छायाँ के साथ-साथ दौड़ लगाना,
और हमारा उनसे हार जाना ||
याद है मुझे ........
पक्षिओं के पंख मुट्ठी में बंद करके फूँक से उडाना,
और उसे फिर से पकड़ना ||
याद है मुझे ........
जहाज की आवाज सुनते ही घर से बाहर निकल आना,
और जहाज की आवाज से भी ज्यादा सोर मचाना ||
याद है मुझे ........
उडती चीलों को अपनी पतंग बना लेना,
और बिना पतंग और डोर दे पेच लड़ाना ||
याद है मुझे ........
पत्थर को यमुना में फेंकना,
और उसे ढूंड लाने के लिए दुबकी लगाना ||
याद है मुझे ........
मोहना की हर मन-मोहनी यादें ,
जो मेरे मन को महका देती हैं ||
......... जितेंदर मोहना ( बिट्टू )
जून की होती जब टीक दोपहरी
तितली
जून की होती जब टीक दोपहरी,
हाथ में लिए हुए रुखरी,
जाते जब हम क्यारी में,
उस घेर की बगिया प्यारी में,
जिस में न थे विशेष फूल,
कुछ थे पोधे कुछ थी धुल,
रंग-बिरंगी तितली आती,
अपने पीछे हमें भागाती,
हमको थी वो खूब थकाती,
घंटों तक फिर भी हाथ न आती,
पैर उलझता झुंडों में जब,
हम धम्म से गिर जाते,
तितली बैठती फूलों पे जब,
हम अपना फिर वार चलाते,
पकड़ भी लेते पीली -सफेद,
लाल का होता हमको खेद,
मुश्किल से जब आती हाथ,
मन ही मन हम हर्षाते,
सब बच्चों को उसे दिखाते,
किया हो जैसे बड़ा कोई काम,
आकर देगा कोई इनाम,
तितली पीली- सफेद और लाल ,
न दिखाई देती हैं अब सालों - साल,
जून की होती है जब टीक दोपहरी...... जितेंदर कुमार मोहना (बिट्टू )
मंजिलों की ओर.........
करके किस्मत मुट्ठी में बंद चलता हूँ मैं,
होंसलों के पंख फैलाकर उड़ता हूँ मैं ||
इस कदर दरकिनार हो जाती हैं मंजिलें,
ना करें पुरषार्थ तो खो जाती हैं मंजिलें,
इसलिए हर रश्म मंजिलों को पाने की अदा करता हूँ मैं ||
आजायें चाहे मिश्किलें भी जितनी,
एतबार है मुझे काबिलियत पर अपनी,
इसलिए मुश्किलात के हालात से भी ना डरता हूँ मैं ||
मंजिलों को पाने की चाह है, मेरे मन में,
स्पष्ट है मुकाम तक जाने की रह मेरे मन में,
इसलिए हर कदम मंजिलों की ओर रखता हूँ मैं ||
हर सफ़र आसान है, मुश्किल हर डगर है,
ये रास्तों का नहीं केवल सोच का असर है,
इसलिए सोच अपनी सकारात्मक रखता हूँ मैं ||
करके किस्मत मुट्ठी में बंद चलता हूँ मैं,
होंसलों के पंख फैलाकर उड़ता हूँ मैं,
मंजिलों को पाने की चाह है, मेरे मन में,
इसलिए हर कदम मंजिलों की ओर रखता हूँ मैं ||
-- जितेंदर मोहना ( बिट्टू )
नये वर्ष की नई शुरुआत !!!!!
क्यूँ मानते हो नये वर्ष को स्पेशल,
क्यूँ बदल देते हो एक जनवरी को एक नये दिन के रूप में ,
बदलना है तो हर पल को बदलो ,
हर क्षण को बदलो !!
क्यूँ बदलना चाहते हो
हर फूल को, हर खुशबू को ,
बदलना है तो हर चमन को बदलो ,
हर गुलशन को बदलो !!
क्यूँ बदलना चाहते हो
हर चाँद को, हर सितारे को ,
बदलना है तो इस आसमान को बदलो
इस गगन को बदलो !!
क्यूँ बदलना चाहते हो
हर गावों को, हर शहर को ,
बदलना है तो अपने देश को बदलो ,
इस वतन को बदलो !!
क्यूँ बदलना चाहते हो
हर इन्सान को, हर शख्स को ,
बदलना है तो चितवन को बदलो
अपने मन को बदलो !!
बदल डालो हर गुलिश्तान को ,आसमान को ,इस जहान को ,
अगर ज्यादा ही तमन्ना है बदलने की तो
केवल अपनी अंतरात्मा को बदलो ,
अपने जहन को बदलो ,
तब बदल जाएगा अपने आप ही ....
ये नज़ारा , ये मंज़र , ये गुलिश्तान, ये आसमान, ये जहान
और यही होगी नए वर्ष की नयी पहचान .........
लेखक :- जितेंदर कुमार मोहना (बिट्टू)
9813 197 197
नये वर्ष की नई शुरुआत !!!!!
क्यूँ मानते हो नये वर्ष को स्पेशल,
क्यूँ बदल देते हो एक जनवरी को एक नये दिन के रूप में ,
बदलना है तो हर पल को बदलो ,
हर क्षण को बदलो !!
क्यूँ बदलना चाहते हो
हर फूल को, हर खुशबू को ,
बदलना है तो हर चमन को बदलो ,
हर गुलशन को बदलो !!
क्यूँ बदलना चाहते हो
हर चाँद को, हर सितारे को ,
बदलना है तो इस आसमान को बदलो
इस गगन को बदलो !!
क्यूँ बदलना चाहते हो
हर गावों को, हर शहर को ,
बदलना है तो अपने देश को बदलो ,
इस वतन को बदलो !!
क्यूँ बदलना चाहते हो
हर इन्सान को, हर शख्स को ,
बदलना है तो चितवन को बदलो
अपने मन को बदलो !!
बदल डालो हर गुलिश्तान को ,आसमान को ,इस जहान को ,
अगर ज्यादा ही तमन्ना है बदलने की तो
केवल अपनी अंतरात्मा को बदलो ,
अपने जहन को बदलो ,
तब बदल जाएगा अपने आप ही ....
ये नज़ारा , ये मंज़र , ये गुलिश्तान, ये आसमान, ये जहान
और यही होगी नए वर्ष की नयी पहचान .........
लेखक :- जितेंदर कुमार मोहना (बिट्टू)
9813 197 197
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