बुधवार, सितंबर 07, 2011

मंजिलों की ओर..............

मंजिलों की ओर..............

करके किस्मत मुट्ठी में बंद चलता हूँ मैं,
होंसलों के पंख फैलाकर उड़ता हूँ  मैं ||

इस कदर दरकिनार हो जाती हैं मंजिलें,
ना करें पुरषार्थ तो खो जाती हैं मंजिलें,
इसलिए हर रश्म मंजिलों को पाने की अदा करता हूँ  मैं ||

आजायें चाहे मिश्किलें भी जितनी,
एतबार है मुझे काबिलियत पर अपनी,
इसलिए   मुश्किलात के हालात से भी ना डरता हूँ मैं ||

मंजिलों को पाने की चाह है, मेरे मन में,
स्पष्ट है  मुकाम तक जाने की रह मेरे मन में,
इसलिए  हर कदम मंजिलों की ओर रखता हूँ मैं ||

हर सफ़र आसान है, मुश्किल हर  डगर है,
ये रास्तों का नहीं केवल सोच का असर है,
इसलिए  सोच अपनी सकारात्मक रखता हूँ मैं ||


करके किस्मत मुट्ठी में बंद चलता हूँ मैं,
होंसलों के पंख फैलाकर उड़ता हूँ  मैं,
मंजिलों को पाने की चाह है, मेरे मन में,
इसलिए  हर कदम मंजिलों की ओर रखता हूँ मैं ||

                                                                                      -- जितेंदर मोहना ( बिट्टू )

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